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श्रीमद्भगवद्गीता - यथार्थ गीता - मानव धर्मशास्त्र

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Descrizione di श्रीमद्भगवद्गीता - यथार्थ गीता - मानव धर्मशास्त्र

५२०० वर्षों के लम्बे अन्तराल के बाद श्रीमद्भगवद्गीता की शाश्वत व्याख्या


श्रीकृष्ण जिस स्तर की बात करते हैं, क्रमश: चलकर उसी स्तर पर खड़ा होनेवाला कोई महापुरुष ही अक्षरश: बता सकेगा कि श्रीकृष्ण ने जिस समय गीता का उपदेश दिया था, उस समय उनके मनोगत भाव क्या थे? मनोगत समस्त भाव कहने में नहीं आते। कुछ तो कहने में आ पाते हैं, कुछ भाव-भंगिमा से व्यक्त होते हैं और शेष पर्याप्त क्रियात्मक हैं– जिन्हें कोई पथिक चलकर ही जान सकता है। जिस स्तर पर श्रीकृष्ण थे, क्रमश: चलकर उसी अवस्था को प्राप्त महापुरुष ही जानता है कि गीता क्या कहती है। वह गीता की पंक्तियाँ ही नहीं दुहराता, बल्कि उनके भावों को भी दर्शा देता है; क्योंकि जो दृश्य श्रीकृष्ण के सामने था, वही उस वर्तमान महापुरुष के समक्ष भी है। इसलिये वह देखता है, दिखा देगा; आपमें जागृत भी कर देगा, उस पथ पर चला भी देगा।


‘पूज्य श्री परमहंस जी महाराज’ भी उसी स्तर के महापुरुष थे। उनकी वाणी तथा अन्त:प्रेरणा से मुझे गीता का जो अर्थ मिला, उसी का संकलन ’यथार्थ गीता’ है। - स्वामी अड़गड़ानन्द


लेखक के प्रति:


“यथार्थ गीता” के लेखक एक संत है जो शैक्षिक उपाधियों से सम्बद्ध न होने पर भी सद्गुरू कृपा के फलस्वरूप ईश्वरीय आदेशों से संचालित है | लेखन को आप साधना भजन में व्यवधान मानते रहे है किन्तु गीता के इस भाष्य में निर्देशन ही निमित बना | भगवान ने आपको अनुभव में बताया कि आपकी सारी वृतियाँ शान्त हो गयी है केवल छोटी – सी एक वृति शेष है – गीता लिखना | पहले तो स्वामीजी ने इस वृति को भजन से काटने का प्रयतन किया किन्तु भगवान के आदेश को मूर्त स्वरुप है, यथार्थ गीता | भाष्य मैं जहाँ भी त्रुटि होती भगवान सुधार देते थे | स्वामीजी की स्वान्तः सुखाय यह कृति सर्वान्तः सुखाय बने, इसी शुभकामना के साथ |


श्री हरी की वाणी वीतराग परमहंसो का आधार आदि शास्त्र गीता – संत मत – १०-२-२००७ – तृतीय विश्व हिन्दू परिषद् - विश्व हिन्दू सम्मेलन दिनाक १०-११-१२-१३ फरवरी २००७ के अवसर पर अर्ध कुम्ब २००७ प्रयाग भारत में प्रवासी एवं अप्रवासी भारतीयों के विश्व सम्मेलन के उद्गाटन के अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद् ने ग्यारहवी धर्म संसद में पारित गीता हमारा धर्म शास्त्र है प्रस्ताव के परिप्रेक्ष्य में गीता को सदेव से विधमान भारत का गुरु ग्रन्थ कहते हुए यथार्थ गीता को इसका शाश्वत भाष्य उद्घोषित किया तथा इसके अंतर्राष्ट्रीय मानव धर्म शास्त्र की उपयोगिता रखने वाला शास्त्र कहा |


श्री काशीविद्व्त्परिषद – भारत के सर्वोच्च श्री काशी विद्व्त्परिषद ने १-३-२००४ को “श्रीमद भगवद्गीता” को अदि मनु स्मृति तथा वेदों को इसी का विस्तार मानते हुए विश्व मानव का धर्म शास्त्र और यथार्थ गीता को परिभाषा के रूप में स्वीकार किया और यह उद्घोषित किया की धर्म और धर्मशास्त्र अपरिवर्तनशील होने से आदिकाल से धर्मशास्त्र “श्रीमद भगवद्गीता” ही रही है |


विश्व धर्म संसद:


३-१-२००१ – विश्व धर्म संसद में विश्व मानव धर्मशास्त्र “श्रीमद भगवद्गीता” के भाष्य यथार्थ गीता पर परमपूज्य परमहंस स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज जी को प्रयाग के परमपावन पर्व महाकुम्भ के अवसर पर विश्वगुरु की उपाधि से विभूषित किया.


२-४-१९९७ – मानवमात्र का धर्मशास्त्र “श्रीमद भगवद्गीता” की विशुध्द व्याख्या यथार्थ गीता के लिए धर्मसंसद द्वारा हरिद्वार में महाकुम्ब के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में परमपूज्य स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज को भारत गौरव के सम्मान से विभूषित किया गया.


१-४-१९९८ – बीसवी शताब्दी के अंतिम महाकुम्भ के अवसर पर हरिद्वार के समस्त शक्रचार्यो महामंद्लेश्वारों ब्राह्मण महासभा और ४४ देशों के धर्मशील विद्वानों की उपस्थिति में विश्व धर्म संसद द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में पूज्य स्वामी जी को “श्रीमद भगवद्गीता” धर्मशास्त्र (भाष्य यथार्थ गीता) के द्वारा विश्व के विकास में अद्वितीय योगदान हेतु “विश्वगौरव” सम्मान प्रदान किया गया | - २६-०१-२००१


माननीय उच्च न्यायालय – इलाहाबाद का एतहासिक निर्णय


माननीय उच्चन्यायालय इलाहाबाद ने रिट याचिका संख्या ५६४४७ सन २००३ श्यामल रंजन मुख़र्जी वनाम निर्मल रंजन मुख़र्जी एवं अन्य के प्रकरण में अपने निर्णय दिनांक ३० अगस्त २००७ को “श्रीमद भगवद्गीता” को समस्त विश्व का धर्मशास्त्र मानते हुए राष्ट्रीय धर्म्शात्र की मान्यता देने की संस्तुति की है | अपने निर्णय के प्रस्तर ११५ से १२३ में माननीय न्यायालय में विभिन गीता भाष्यों पर विचार करते हुए धर्म, कर्म, यज्ञ, योग आदि को परिभाषा के आधार पर इसे जाति पाति मजहब संप्रदाय देश व काल से परे मानवमात्र का धर्मशास्त्र माना जिसके माध्यम से लौकिक व परलौकिक दोनों समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है |


5200 Eternal spiegare Bhagavad Gita, dopo anni di inattività prolungata


Krishna parla del livello, rispettivamente, di seguito fatiscente sullo stesso piano vi dirà un grande uomo come letteralmente che Krishna è stato predicato per il momento in gita, le sue espressioni erano occulti che cosa? Non venite a dire tutto senso occulto. Alcuni trovano nel dire, alcuni stanno esprimendo il gesto e il resto sono sufficientemente funzionale come un vagabondo potrebbe arrivare a tanto. I livelli erano Krishna rispettivamente, di seguito lo stesso maestro palco sa quello che dice Gita. Egli non ripete, ma indicano anche i loro sentimenti e filari di Gita; Perché quella era la scena di Krishna, è anche prima del master corrente. Così egli vede, mostrerà; Per chi guarda anche girerà anche su questa strada.


"Sri Paramahansa Ji 'era il padrone dello stesso livello. Il suo discorso e inter mi ha ispirato a compilare lo stesso, ha ottenuto un senso della realtà Gita Gita. - Proprietario Adgdhanand


Autore A:


"Autore della Realtà Gita" è un santo che gestisce i comandi divini a seguito della grazia del Satguru non è associato con i gradi accademici | Scrivendo a voi come interferenza nel culto spirituale ma fatto dirigere il bene di questo commento Gita | Dio ha detto che l'esperienza che è stata tranquilla tutta la tua Vritiya solo a breve - C è un Vriti sinistra - scrivere Gita | taglio di prima, Swamiji ha Prytn loda la forma Vriti ma tangibile al comando di Dio, la realtà Gita | Commento ovunque io errore sarebbe miglioramenti Dio | Swamiji Swanta sukhaya ha reso il lavoro Srwanta sukhaya, con la stessa buona fortuna |


Dichiara di base Vitrag Prmahnso ecc Scrittura Gita Mr. Green - non un santo - 2007/10/02 - terzo VHP - Conferenza mondiale indù Data 10-11-12-13 oltremare indiano semi Kumb 2007 Prayag in occasione del febbraio 2007 e VHP Gita in undicesima religione Parlamento Gita nostre Scritture offrono un punto di vista sulla conferenza Udgatn NRI mondo Per essere il suo commento eterna proclamato realtà Gita dice Guru Granth esistenti India SDEV e ha detto la sua teologia dell'uomo internazionale di utilità per le Scritture |


Mr. Kashividwtprisd - riconosciuto come uno dei più alti Shri Kashi Vidwtprisd dell'India il 2004/01/03 il "Srimad Bhagavad Gita", come l'Adi Manu espandere la memoria ed i Veda, la teologia umana mondo e realtà definizione Gita e proclamata sia della religione e costante teologia è la Scrittura "Srimad Bhagavad Gita" all'inizio |


Parlamento Mondiale delle Religioni:


2001/03/01 - Religioni mondiali insignito del titolo di Maestro del Mondo, in occasione di Sua Santità Paramhans Swami Sri Adgdhanand Ji Ji Santa Festa Kumba Mela a Prayag Mondiale commenti realtà Gita teologia umana "Srimad Bhagavad Gita" in Parlamento.


2-4-L99 7 - teologia umanità "Srimad Bhagavad Gita" l'interpretazione pura della realtà Gita convenzione internazionale Sua Santità Swami Sri Adgdhanand Ji Maharaj, in occasione della Mahakumb a Haridwar Dharmsnsd ad aver ricevuto l'onore della orgoglio indiano.


L-4-L99 8 - Tutti Skrcharyo di Haridwar in occasione dell'ultimo Kumba Mela XX secolo Mhamndleshwaron bramino Mahasabha e la presenza dei pii studiosi provenienti da 44 paesi Master in Religioni mondiali convenzione internazionale venerato dal Parlamento G. "Srimad Bhagavad Gita" teologia (commento realtà Gita sviluppo mondiale) è stato premiato "Biswgurv" per il contributo eccezionale | - 26-01-2001


decisione Athasik di Hon'ble Alta Corte - Allahabad


Onorevole Alta Corte di Allahabad Scrittura Petizione n 56447 2003 Shyamal Ranjan Mukherjee v Nirmal Ranjan sua decisione episodio datato Mukherjee e altri riconoscimenti raccomandata di Dharmshatr nazionale il 30 agosto 2007 "Srimad Bhagavad Gita", come l'intero mondo della teologia | Prendere in considerazione vari Court onorevole Gita Bhashyon in pietra da 115 a 123 della sua decisione, la religione, il lavoro, il sacrificio, la definizione di yoga ecc in base alla casta religiosa proverbiale setta attraverso il quale considera la teologia del genere umano al di là del paese e del tempo e Prlukik può essere aperto sia rotta la prosperità |

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(17-07-2018)
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